फागुनी शाम अंगूरी उजास
बतास में जंगली गंध का डूबना
ऐंठती पीर में
दूर, बराह-से
जंगलों के सुनसान का कुंथना ।
बेघर बेपरवाह
दो राहियों का
नत शीश
न देखना, न पूछना ।
शाल की पँक्तियों वाली
निचाट-सी राह में
घूमना घूमना घूमना ।
फागुनी शाम अंगूरी उजास
बतास में जंगली गंध का डूबना
ऐंठती पीर में
दूर, बराह-से
जंगलों के सुनसान का कुंथना ।
बेघर बेपरवाह
दो राहियों का
नत शीश
न देखना, न पूछना ।
शाल की पँक्तियों वाली
निचाट-सी राह में
घूमना घूमना घूमना ।