भील लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
म्हू तो म्हारा घर में हूती, कांकरिया कुण मारे रे।
घर-घर रा कांकरिया माहे घायल वेगी यो,
परी परणाओ।
हाँ रे परी परणावो, देस ने परदेस वचमें यो,
परी परणाओ।
- एक नवयौवना कहती है कि मैं तो अपने घर में सोई हुई हूँ। कंकड़ कौन मार रहा है? पास के घरों के लड़कों से में घायल हो गई हूँ, मेरा ब्याह देश-परदेश में कहीं भी कर दो।