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फाग गीत / 14 / भील

भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

मारा आँगना मा भाँगड़ी नु झाड़
ढोला मारुजी पीवे रे तम्बाकू।
सासरा मा मारी सासुरी नु दख
पीयरा मा आऊ मारी आई नु लाड़
मारी आई जी नु लाड़।
ढोला मारुजी पीवे रे तम्बाकू
मारा आँगना मा भाँगड़ी नु झाड़
सासरा मा जाऊँ मारा सुसरा नु दख
ढोला मारुजी पीवे रे तम्बाकू...।
पीयरा मा आऊँ बाजी नु लाड़
ढोला मारुजी पीवे रे तम्बाकू.....।
सासरा मा जाऊँ मारी ननदी नु दख
पीयरा मा आऊँ मारी भाभी मोल्या
ढोला मारुजी पीवे रे तम्बाकू....।
सासरा मा जाई मारा देवर नु दख
पीयरा मा आवी मारा भाइ नु लाड़
ढोला मारुजी पीवे रे तम्बाकू
मारा आँगना मा भाँगड़ी नु झाड़।
ढोला मारुजी पीवे रे तम्बाकू

- पत्नी कहती है कि उसके आँगन में भाँग का पेड़ है। उसके पति भाँग और तम्बाकू पी-पीकर मस्त रहते हैं। अब मैं क्या करूँ? ससुराल में मेरी सासु दुःख देती है और मायके में माँ लाड़-प्यार! मैं क्या करूँ? कहाँ जाऊँ?

ससुराल में जाती हूँ तो मेरे ससुर दुुःख देते हैं और मायके में बाप का प्यार! मेरे पति तो भाँग और तम्बाकू में मस्त रहते हैं। ससुराल मैं जाती हूँ तो मुझे ननद की ओर से दुःख है और मायके में भाभी का व्यवहार ठीक नहीं, मैं क्या करूँ? ससुराल में मुझे देवर की ओर से दुःख है और मायके में भाई का प्यार! मैं क्या करूँ? मुझे
कहाँ जाना चाहिए?