Last modified on 12 मई 2014, at 11:59

फाल्गुन शुक्ला सप्तमी की शाम,55 / शमशेर बहादुर सिंह

(गंगा पर, फाफामऊ के पास)

रेती पार
स्निग्धर अचल धारा में धीरे-धीरे
डूब रहा था...
सूर्य

पीछे छूट रही थीं
गाती हुई टिटिहरियाँ
और सघन करती-सी
रुकी हवा का धुँधला नीला मौन।

दूर से निकट आता धीरे-धीरे
भारी छायाओं की महराबों का
गंगा का लंबा पुल
सहसा
ऊपर व्यो म में सहज
डूबा हुआ खड़ा था!

मौन हमारी नाव मानो
स्व यं दीया-बाती का समय
या कि
जन्मि दिवस हो जैसे मन के कवि का
दूर लिये जाती हो जिसको संध्या
अपने प्रिय रजनी के पूनम द्वीप।