लेकिन फिर आऊँगा मैं भी
लिये झोली में अग्निबीज
धारेगी जिसको धरा
ताप से होगी रत्नप्रसू।
कवि गाता है :
अनुभव नहीं न ही आशा-आकांक्षा :
गाता है वह अनघ
सनातन जयी।
लेकिन फिर आऊँगा मैं भी
लिये झोली में अग्निबीज
धारेगी जिसको धरा
ताप से होगी रत्नप्रसू।
कवि गाता है :
अनुभव नहीं न ही आशा-आकांक्षा :
गाता है वह अनघ
सनातन जयी।