आओ
आज फिर कविता लिखें
कविता मेँ लिखेँ
प्रीत की रीत
...जो निभ नहीँ पाई
याकि निभाई नहीँ गई !
कविता मेँ आगे
रोटी लिखें
जो बनाई तो गई
मगर खिलाई नहीँ गई !
रोटी के बाद
कफन भर
कपड़ा लिखें
जो ढांप सके
अबला की अस्मत
गरीब की गरीबी !
आओ फिर तो
मकान भी लिख देँ
जिसमेँ सोए कोई
चैन की सांस ले कर
बेघर भी तो
ना मरे कोई !
चलो !
अब लिख ही देँ
सड़कोँ पर अमन
सीमाओँ पर सुलह
सियासत मेँ हया
और
जन जन मेँ ज़मीर !