फिर जल गया है रावण
हर बार की तरह
फूटते पटाखों के शोर 
और तालियों की 
गड़गड़ाहट के बीच l
बहन के अपमान का 
प्रतिशोध लेने को
जो कर बैठा दुसाहस
माता सीता के हरण का 
मगर मर्यादित रहा 
फिर भी
कायम रह पाई थी  
वैदेही की पवित्रता l 
लेकिन क्या सच में 
इतना क्रूर था वह 
जितने निर्मम
और विकृत मानसिकता के 
गुलाम हैं ये 
कलयुगी रावण l
मासूम बच्चियों को नोचते
तो कभी निर्दोष और अबोध
बचपन को
पेट्रोल छिड़ककर
आग लगा देने वाले
आततायी 
या फिर मनुष्य रूप में 
भूलवश जन्मे पशु ?
उदंड और अभिमानी
उस रावण का
अंत तो हो गया था
बहुत पहले
दंड स्वरुप 
मगर कब अवतरित होंगे
इन कलयुगी रावणों को 
संहारने वाले राम ?