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फिर से जल / ओम पुरोहित ‘कागद’

थकी नहीं हूं अभी
अपने अंतस के जाप से
जली नहीं हूं
सूर्य के तप से।
सुन!
जल जल कर
होऊंगी फिर से मैं
जल जलाकार
जैसे होता है जल
जल जल कर
फिर से जल।