यहाँ
बहुत फिसलन है, साथी !
चलो, कहीं दूर चलते हैं ।
अपनी चमकीली चप्पलें उतार
धरती के किसी अपरिचित छोर पर
जहाँ धरती हमारे क़दमों के लिए
अपनी हथेली
ख़ुद-ब-ख़ुद आगे बढ़ाती हो ....।
(रचनाकाल: 2015, दिल्ली)
यहाँ
बहुत फिसलन है, साथी !
चलो, कहीं दूर चलते हैं ।
अपनी चमकीली चप्पलें उतार
धरती के किसी अपरिचित छोर पर
जहाँ धरती हमारे क़दमों के लिए
अपनी हथेली
ख़ुद-ब-ख़ुद आगे बढ़ाती हो ....।
(रचनाकाल: 2015, दिल्ली)