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फिसलन / अदनान कफ़ील दरवेश

यहाँ
बहुत फिसलन है, साथी !
चलो, कहीं दूर चलते हैं ।

अपनी चमकीली चप्पलें उतार
धरती के किसी अपरिचित छोर पर

जहाँ धरती हमारे क़दमों के लिए
अपनी हथेली
ख़ुद-ब-ख़ुद आगे बढ़ाती हो ....।

(रचनाकाल: 2015, दिल्ली)