Last modified on 10 जनवरी 2021, at 00:35

फुलबासन / शीतल साहू

बचपन से करती रही है संघर्ष
दो जून रोटी के लिए
ढंग से कपड़े के लिए
शिक्षा और दीक्षा के लिए

कभी लोगों के जूठे बर्तनों को धोते
कभी दो पैसों को देख सपने संजोते
पढ़ते बच्चो को खिड़की से झांकते
कभी पड़े काग़ज़ के पन्नो से
शिक्षा और ज्ञान की मोती चुनते।

करती गुरु जनो को पढ़ाने की गुहार
मां बाबा कहते कैसे पढ़ाये बेटी, हम है लाचार
दो जून नहीं मिलता भोजन हमें पेटभर
कहा से लाये तेरी शिक्षा को ले पैसे उधार।

कहते वे, बेटी तू है नारी जात और पराया धन
नही ज़रूरत तुझे शिक्षा और ज्ञान
सीख चूल्हा चौका और सम्हालो घर द्वार
शादी कर चले जाएगी बसाने दूजा घर बार

देख माँ बाप की तंगहाली और मजबूरी
देख उनकी ग़रीबी और लाचारी
उनके उपेक्षा की बाते सुनकर
मन मसोस रह गयी, छोड़कर पढ़ने का विचार।

शादी बाद भी वही लाचारी
पति था अनपढ़ और करता बेगारी
फिर भोगती वही ग़रीबी और मजबूरी
कभी भटकती जंगलझाड़ी कभी चराती भेड़ बकरी
कभी औरों के घर करनी पड़ती रात-रात चाकरी
बच्चों के भूख मिटाने भी करनी पड़ती तिमारदारी

उसकी यही ग़रीबी और लाचारी
लोगो के आँख की बन गयी थी किरकिरी
देते उलाहना, कभी उड़ाते उसकी हँसी ठिठोरी
देख आती ले मदद की आश उनको,
 बंद कर देते सारे दरवाजे और खिड़की।

देख अपनी ये तंगहाली और बदहाली
खोजती रास्ता पाने ग़रीबी से छुटकारा
देख चहु ओर निराशा और अँधेरा
घोट गला अपने ममता और करुणा की
बच्चो संग निकल पड़ी करने वह खुदकुशी।

तब मासूम बच्ची की सुन करुण पुकार
सुन उनकी रुदन और चीत्कार
करती जो उससे दुर्दशा से लड़ने की गुहार
तब मन में जागी शक्ति संचार
शक्ति और साहस बटोरकर
आत्मबल की कुंजी पाकर
उठ खड़ी हो गयी वह रानी लक्ष्मीबाई बनकर।

भूख और ग़रीबी को हटाने
शिक्षा और आत्मनिर्भरता की ज्योति जलाने
नशा और जुए की लत छुड़ाने
घरेलू हिंसा और अत्याचार मिटाने
उच्च नीच और जात पात की खाई पाटने
नारी को अबला से सबला बनाने
उठ खड़ी हो गयी समाज को एक नई दिशा दिखाने।

जान समझ गयी नारी की बदहाली का कारण
ढूँढ ली उस दुर्दशा का उन्मूलन
संगठन और एकता के ताकत को पहचान
जैसे अकेले कुत्ते या बिल्ली को मारे अगर पत्थर
भाग जाते, करते पलायन वह डरकर
लेकिन मधुमक्खी के छाते पर हो अगर वही प्रहार
नही डरती वे और करती आक्रमण और प्रतिकार।

थी बड़ी कठिन और काँटों की डगर
सह समाज की ताने और पति की मार
पर हिम्मत थी फौलादी और
थी इच्छा करें वह कुछ कर-गुजर
उठ खड़ी हुई चलने को एक नई डगर
संगठन के एकता की लड़ी में पिरोने
एक एक अबला नारी को लगी, वह बटोरने।