फूटी है
पीड़ा की हांडी
थकें न दो
कलझलती आंखें
एक शिला
मुझ को दे दीजे
बांधे रहूं
मुहाने दोनों
नवम्बर’ 77
फूटी है
पीड़ा की हांडी
थकें न दो
कलझलती आंखें
एक शिला
मुझ को दे दीजे
बांधे रहूं
मुहाने दोनों
नवम्बर’ 77