Last modified on 7 जनवरी 2014, at 17:33

फूलों में साँप / गुलाब सिंह

परीक्षित पानी में रह रहे हैं
साँप
फूलों में बह रहे हैं।

फूल, आँखों की आकांक्षा
नाकों की नीयत
कब तक टलती
देखने की सुविधा
सूँघने की सहूलियत

अभिशापित मौत के क्षण
कितने दुर्वह रहे हैं।

साँपों से बिना लड़,
धरती छोड़ कर
संभव नहीं प्राण-रक्षा,
मृत्यु से मरता नहीं समय
करता
जनमेजय के जन्म की प्रतीक्षा,

यज्ञ यानी इतिहास की इयत्ता
नाग-नर दोनों सह रहे हैं।
साँप, फूलों में बह रहे हैं
परीक्षित पानी में रह रहे हैं।