बिन छेड़े, जी खोल सुगन्धों को जग में बिखरा दूँगा;
उषा-राग पर, दे पराग की भेंट, रागिनी गा दूँगा;
छेड़ोगे, तो पत्ती-पत्ती चरणों पर बिखरा दूँगा;
संचित जीवन साध कलंकित न हो, कि उसे लुटा दूँगा;
किन्तु मसल कर सखे! क्रूरता--
की कटुता तू मत जतला;
मेरे पन को दफना कर
अपनापन तू मुझ पर मत ला।
रचनाकाल: नागपुर-१९३४