फूल देखा विजन में खिला था
आ गी याद मुझ को तुम्हारी
रूप ने कब किसी को बुलाया
आँख में जोत बन कर समाया
देख पाया वही देख आया
चाँद देखा गगन में खिला था
चाँदनी से धरा थी सुधारी
दिव्य संगीत की क्या कला है
चेतना में निरंतर पला है
गान किस को कहीं भी खला है
हास देख वदन में खिला था
आँख ने आरती जब उतारी
(रचना-काल - 08-11-48)