फूल मंगाऊं हार बनाऊ। मालीन बनकर जाऊं॥१॥
कै गुन ले समजाऊं। राजधन कै गुन ले समाजाऊं॥२॥
गला सैली हात सुमरनी। जपत जपत घर जाऊं॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। बैठत हरिगुन गाऊं॥४॥
फूल मंगाऊं हार बनाऊ। मालीन बनकर जाऊं॥१॥
कै गुन ले समजाऊं। राजधन कै गुन ले समाजाऊं॥२॥
गला सैली हात सुमरनी। जपत जपत घर जाऊं॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। बैठत हरिगुन गाऊं॥४॥