हँसी ही फैलाऊँगा
फूल के गोत्र का हूँ
पानी के कुल का हूँ
उतरूँगा जड़ की ही तरफ़
हाँ, बड़ी झील !
पानी के कुल का हूँ
इसीलिए
जहाँ पानी देखता हूँ
फैलाकर अपनी बाँह
ढरक जाता हूँ
उधर ही !
हँसी ही फैलाऊँगा
फूल के गोत्र का हूँ
पानी के कुल का हूँ
उतरूँगा जड़ की ही तरफ़
हाँ, बड़ी झील !
पानी के कुल का हूँ
इसीलिए
जहाँ पानी देखता हूँ
फैलाकर अपनी बाँह
ढरक जाता हूँ
उधर ही !