उस दिन से
नहीं सुनी किसी ने
जोगनी की आवाज़
उस अँधेरे-छोटे कमरे में जब
कोई नोचता है उसकी देह
तो जोगनी
सामने की दीवार पर टंगी
बाबा की तस्वीर में खो जाती है
बरसों पुरानी फ्रेम से घिरे बाबा
जाने कब से बीड़ी फूंक रहे हैं उस तस्वीर में
उस दिन से
नहीं सुनी किसी ने
जोगनी की आवाज़
उस अँधेरे-छोटे कमरे में जब
कोई नोचता है उसकी देह
तो जोगनी
सामने की दीवार पर टंगी
बाबा की तस्वीर में खो जाती है
बरसों पुरानी फ्रेम से घिरे बाबा
जाने कब से बीड़ी फूंक रहे हैं उस तस्वीर में