मरुथली लहरियाँ मन के भीतर
आँखें पोखर
तन पर श्रम-सीकर
शीशे की टूटती रेखाएँ
उभरती शिराएँ
साबित है कौन जिसे—
चाव से दिखाएँ
काटे दिन फटी धूप सीकर
रातें बोकर
बंजर धरती पर
मरुथली लहरियाँ मन के भीतर
आँखें पोखर
तन पर श्रम-सीकर
शीशे की टूटती रेखाएँ
उभरती शिराएँ
साबित है कौन जिसे—
चाव से दिखाएँ
काटे दिन फटी धूप सीकर
रातें बोकर
बंजर धरती पर