जेकर महानदी महतारी
राजिव लोचन बाप
छत्तीसगढ़ के ए धरती ल
कइसे लगगे श्राप।
बंजर होगे ना
सोना असन चमकत धरती
बंजर होगे ना।
बरसिस नहीं बादर बैरी
दुच्छा मुख ल टारिस
लालच मं भटकाके एसो
घुमा-घुमा के मारिस
सावन भादो अइसे तपिस
जइसे भूंजय होरा
मोर धान के कटोरा
बंजर होगे ना
चंदन असन महकत धरती
बंजर होगे ना॥1॥
खेती बारी नींदेन कोड़ेन
जांगर ल खपाएन
दूध के संग मं दुहला घलो
एसो के साल गवांएन
घर के बिजहा खेत म डारेन
पेट ल पारेन फोरा
मोर महानदी के कोरा
बंजर होगे ना
फूलत फरत हरियर धरती
बंजर होगे नां।2॥
ओढ़ना, कपड़ा, नून तेल ला
कामा करके लेबो।
खातू-माटी के करजा ल
कहां ल लाके देबो।
घुरवा असन बाढ़े बेटी के
कइसे करबो तोरा
मोर धान के कटोरा
बंजर होगे ना
सोना असन चमकत धरती
बंजर होगे ना॥3॥