बंदर ने खोला सैलून,
नाम रखा है अफलातून!
बढ़िया कुर्सी-मेज मँगाया,
नया उस्तरा वहीं सजाया,
जापड़ोस से शीशा माँगा
ऊपर अपना फोटो टाँगा।
रोब जमाने को पब्लिक पर
लगवाया एक टेलीफोन!
बाल काटना सीख न पाए
फिर तो बंदर जी घबराए,
हुलिया जिसका खूब बिगाड़ा,
गाहक उन पर वही दहाड़ा।
आखिर झंझट छोड़-छाड़कर
भाग गए वे देहरादून।