Last modified on 23 नवम्बर 2017, at 17:06

बंदिनी / विवेक चतुर्वेदी

वो चाहती है उसके हाथों से बुना गया है जो सूत का सुआ
वो उड़कर चला जाए उसके देस भरकर चिठ्ठी का भेस
जाकर बैठ जाए वो सुआ बाबू की सूखती परधनी पर
अम्मा के हाथ की परात पर
भैया की साइकिल के हैंडल पर
भाभी के कोठे की खूँटी पर
और अपनी चोंच और पैरों से छू ले वो सुआ सब
जो वो नहीं छू सकेगी अब बरसों बरस।