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बंदी / फ़रोग फ़रोखज़ाद

मैं तुम्हें चाहती हूँ हालाँकि मालूम है
कभी अपने सीने से लगा नहीं पाऊंगी तुम्हें
स्वच्छ और चमकीले आकाश हो तुम
और मैं अपने पिंजरे के इस कोने में
दुबकी हुई एक बंदी चिड़िया।

सर्द और काली सलाखों के पीछे से
बढ़ती हैं तुम्हारी ओर
लालसापूर्ण मेरी कातर निगाहें
आतुर होकर देखती रहती हूँ बाट उस बांह की
जो मुझ तक पहुँचे और मैं फड़फड़ाकर खोल दूँ
अपने सारे पंख तुम्हारी ओर।

सोचती हूँ, गफ़लत के पल भी आएँगे
और मैं इस सन्नाटे की क़ैद से उड़ जाऊँगी फुर्र से
पहरेदार की आँखों के इर्द-गिर्द करूँगी चुहलबाजियाँ
और नए सिरे से श्रीगणेश करूँगी
जीवन का तुम्हारे साथ-साथ।

ऐसी ही बातें सोचती रहती हूँ
हालाँकि मालूम है
है नहीं मुझमें इतना साहस
कि मुक्ति के आकाश में उड़ चलूँ
कालकोठरी से बाहर –
पहरेदार बहुत मेहरबान भी हो जाएँ
नहीं मिलेगी मुझे इतनी साँस और हवा
कि फड़फड़ाकर उड़ सकें मेरे पंख।

हर एक चटक सुबह सलाखों के पीछे से
मेरी आँखों में आँखें डालकर मुस्कुराता है एक बच्चा
और जब मैं उन्मत्त होकर गाना शुरू करती हूँ खुशी के गीत
बढ़ आते हैं उसके मुरझाए हुए होंठ मुझ तक चूमने को मुझे।

मेरे आकाश, जब कभी मैं चाहूँ
इस सन्नाटे की कालकोठरी से भाग कर तुम तक पहुँचना
क्या सफाई दूँगी कलपते हुए उस बच्चे की आँखों को
कि बंदी चिड़ियों का ही मालिक होता है
एक ही मालिक
क़ैदखाना।

मैं वह शमा हूँ
जो आत्मदाह से रौशन करते है अपने घोंसले
यदि मैं बुझा दूँगी अपनी आग और लौ
तो फिर कहाँ बचेगा
यह अदद घोंसला भी।


इराज़ बशीरी के अंग्रेजी अनुवाद से हिन्दी में अनुवाद यादवेन्द्र

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