छूट गया पीछे जो
उसमें क्या अपना था
बस
खोती रही खुद को
बहुत सोचती
डरी, सहमी
खोलती
बंद मुट्ठी अपनी
देखने बची थाती
शून्य है वहां भी
कहां कुछ बचा
छूट गया पीछे जो
उसमें क्या अपना था
बस
खोती रही खुद को
बहुत सोचती
डरी, सहमी
खोलती
बंद मुट्ठी अपनी
देखने बची थाती
शून्य है वहां भी
कहां कुछ बचा