Last modified on 18 मई 2011, at 18:40

बंधन / रेशमा हिंगोरानी

तेरा बँधन तो पुराना सा लगे है मुझसे...
दिखे कभी, कभी न आये नज़र!

कभी बादल में तू पानी की तरह,
कभी पानी में है लहरों की तरह,
कभी लहरों में रवानी<ref>बहाव</ref> की तरह…

तेरी हस्ती जुड़ी हुई है इस क़दर मुझसे,
तुझे, चाहूँ भी अगर, तो जुदा न कर पाऊँ!

कभी दरिया को किनारे की तरह,
कभी गिरते को सहारे की तरह,
कभी इक ख़्वाब सुनहरे की तरह,
रही है मुझको भी उतनी ही ज़रूरत तेरी!

मैने हर लम्हा ये चाहा कि निभाऊँ तुझ से,
किसी भी हाल में मै दूर न जाऊँ तुझ से...

बड़े अजीब से रिश्ते रहे हैं मेरे तेरे!

कभी सहरा<ref>रेगिस्तान</ref> में है बादल की तरह,
कभी बादल में तू पानी की तरह!

शब्दार्थ
<references/>