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बंसुरिया / मोहन अम्बर

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साँस थके अँगुरि न चले, पर
फिर भी बजे बंसुरिया सच की
फिर भी बजे बंसुरिया।
जब जमुना जल विष था तब तो

हमसे मौत डरी
जब से काली गया आज तक
गागर नहीं भरी
ओ युग-नंद बहुत गलती पर तेरा श्याम समय

तट क्या जाऊँ, जल क्या लाऊँ,
रोकी सकल डगरिया मेरी, रोकी सकल डगरिया
फिर भी बजे बंसुरिया सच की
फिर भी बजे बंसुरिया।

स्वार्थ कन्हैया की विनती से,
थिरके सबके पाँव
लोभ तिमिर में ऐसे डूबे,
दिखा न अपना गाँव

ऐसे ही जब बौरा-बौरा नाचा सारा गोकुल
मैं भी ग्वालिन नाच गई तो
समझा जगत पतुरिया मुझको समझा जगत पतुरिया
फिर भी बजे बंसुरिया सच की

फिर भी बजे बंसुरिया।
मोल तोल की बात व्यर्थ है,
यह कलियुग की हाट
पाप यहाँ बनवाया करता है

गंगा का घाट
सीकर ओठ बेच कर दुखड़ा, बदले धीर नहीं
चार दिनों में दो दिन बीते,
कब तक लुटे गुजरिया मेरी कब तक लुटे गुजरिया

फिर भी बजे बंसुरिया सच की
फिर भी बजे बंसुरिया।