बकरी, बकरी कहाँ है तेरा,
प्यारा बच्चा बकरा।
कहीं कुड़ता होगा जाकर,
करता होगा नखरा।
इसको दूध पिलाती है तू
मोटा होता जाता।
सुंदर, कोमल, मखमल जैसा
रूप निखरता जाता॥
दूध पिलाती है तू सबको-
गाँधी बसते तेरे मन में।
भोजन थोड़ा ही करती है-
चरे घास तू सारे वन में॥
तू छोटी सी, कोई भी तो-
पाल तुझे सकता है।
तेरे ही बल पर कोई भी
पहलवान बन सकता है॥
तू गरीब की पालन कर्ता
उनको अपना दूध पिलाती
गाँधी जी के आर्दशों को
हर पल ही सबको बतलाती॥