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बगत: दो / ओम पुरोहित ‘कागद’

बगत रा चितराम
कोरै कुण
कुण भाखै
बगत रा ऐनाण
जद कै
बगत निकळै
खुद रै हाथां पड़तख।
निकळतै बगत नै
थामै कुण
बगत रो दिखै नीं
पड़तख आकार!