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बगत : सात / ओम पुरोहित ‘कागद’

बगतो बगत तो
निकळ ई सी
चावै थूं
कित्तो ई कूक
हाथ पटक
का पछै
सोज्या आंख मींच।

निकळतो बगत
थांरी कळाई री
कीमियां घड़ी में
नीं बसै
बा तो हूंण है
जकी होयां सरसी
अमर कुण है
सगळा मरसी!