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बगुला भगत / रामदेव द्विवेदी ‘अलमस्त’

चलले बकुलत सिकार खेले भारी।।
‘अब त मछरियो ना भाखन कहनी हमारी।’
ऊँचे तखत पर आसन जमवले
पाँख लागल मात करे चमकत कटारी।।
चलले.....
‘जय हो मछरियन के, सबकर उदय हो,
तनकी ले अउरी घुसुक आईं आरी।
पूर्बिज का पापे हम हईं बरहमाचारी।।
चलले.....
भगत का भेख पर मछरी मोहइली
जेकरा पर छोह करे जनता वो नारी।
भगत जी अपना हवाई जहाज पर
ले गइलन बहुतन के सरगे दुआरी।।
चलले.....
हाल सदाबरत के केंकड़ा बहादुर
समुझि पिजा लिहले सिउँठा दुधारी
‘हमरा से मामा नाराज काहे भइनी
रउरे चरन लागल नेहिया हमारी।।
चलले.....
मामा दुलार से कान्हें चढ़वले
भगिना परेम से चला दिहलें आरी।
चलले बकुलउ सिकार खेले भारी।।
चलले.....