बचपन
दर्पण से बाहर
मैं हूँ मनहर,
दर्पण से बाहर
संजोए हुए हूँ
मन के कोने में
चुनमुन बचपन
औंधे-मुंह
किलक-किलक
विहंस-विहंस
धूप और बारिश से
हवा और आतिश से
निरापद, नि:संकोच,
खेल रहा है
कंचे की गोली
डंडा और गुल्ली
लुका-छिपी
संग बच्चे--हमजोली
करते अठखेली.