ज़िंदगी ढकी रही
जब तक
उसके बचने की आशा थी
तभी तक ।
ज्यों ही वह उघरी,
-थोड़ी-सी उभरी-
बस,
गुडुम-गुडुप-गड़ाप...
फिर गहरी स्तब्धता ।
ज़िंदगी ढकी रही
जब तक
उसके बचने की आशा थी
तभी तक ।
ज्यों ही वह उघरी,
-थोड़ी-सी उभरी-
बस,
गुडुम-गुडुप-गड़ाप...
फिर गहरी स्तब्धता ।