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बचा रहेगा जीवन / राकेश रेणु

सुबह-सुबह
जिस गर्मी से नींद खुली
वह उसकी हथेली में थी
बिटिया का हाथ मेरे चेहरे पर था
और गर्मी उसके स्पर्श में
वह गर्मी मुझे अच्छी लगी ।

खटखटाहट के साथ जो पहला व्यक्ति मिला
दूधवाला था
उसके दूध और मुँह से
भाप उठ रही थी
एक सी
टटकेपन की उष्मा थी वहाँ
दूध की गर्मी मुझे दूधिये से निःसृत होती दीखी ।

सूर्य का स्पर्श
बेहद कोमल था उस दिन
कठुआते जाड़े की सुबह वह ऐसे मिला
जैसे मिलती है प्रेयसी
अजब सी पुलक से थरथराती हुई
सूर्य की गर्मी मुझे अच्छी लगी।

अभी-अभी लौटा था वह गाँव से
गाँव की गन्ध बाक़ी थी उसमें
दोस्त के लगते हुए गले
मैंने जाना
कितनी उष्मा है उसमें
कितना ज़रूरी है दोस्त का साथ जीवन में

वृद्धा ने उतावलेपन से पूछा
माँ के स्वास्थ्य के बारे में
सब्ज़ी वाले ने दी ताज़ा सब्ज़ियाँ
और लौटा गया अतिरिक्त पैसे

अपरिचित ने दी बैठने की जगह बस में
रिक्शे वाले ने पहुँचाया सही ठिकाने पर
दुकानदार पहचान कर मुस्कुराया और
गड़बड़ नहीं की तौल में
तीर की तरह लपलपाती निकलती थी उष्मा इनसे
और समा जाती भीतर
गरमाती हुई हृदय को ।

केवल बची रहे यह गर्मी
बचा रहे अपनापन
बचा रहेगा जीवन
अपनी पूरी गरमाहट के साथ ।