आज का दिन इस घाटी में मेरा दूसरा दिन है
और एक-एक कण की रणगाथा से भरी समुद्र-सहित तैरती यह पृथ्वी
आती-जाती रोशनी का तट है
जमीन की भाषा में जमीन को। पानी की भाषा में पानी को
कुछ कहना कितना मुश्किल है
अपनी भाषा में अपने को कुछ भी कह सकूँ और यहाँ रह भी सकूँ
कितना मुश्किल है
फिर भी हरे टुकड़ों के बीच। एक जगह एक घर होता
स्वाद से भरा। रोग से बचा। तो सुंदर कितनी अच्छी थी यह नदी
'गूँगे खामोश हैं' ऐसा एकदम नहीं कहा जा सकता
क्योंकि कई गाँवों को मजबूत किलों में बदलनेवाले पत्थर
यहाँ इंतजार कर रहे हैं
और आकाश की जीभ बन कर ताकतवर सन्नाटा
जंगल चखने के बाद इन्हें चाट रहा है
काई, इन पर उस समय की यादगार है
जो न काई था, न पत्थर, न जंगल, न नदी
जब कि किस मुल्क के ईश्वर का समय
मौत का समय नहीं है
सूर्योदय के आस-पास यह नदी है
और नदी के आस-पास यह सूर्योदय नए हैं
क्योंकि पृथ्वी पुरानी है
जिस पर एक दिन की लकड़ियाँ कई दूसरे दिनों का ईंधन है
तंबू के पीछे एक दूसरे दिन का धुआँ उठ रहा है
सन्नाटे के हाथ पर जैसे चिलम आ गई हो
जो चीजें, जो बातें जिन लोगों में अभी नहीं हैं
वे उनके लिए नई होंगी अगले साल
अगले साल के पीछे नहीं दिखाई दे रहा है
जो एक और अगला साल
उससे कहीं यादा साफ दिखाई दे रहा है
कई वर्ष पुरानी इस जगह पर मेरा यह दूसरा दिन
अगले क्षण इस दिन की चाय कहीं नहीं होगी
तीसरे दिन के सामान में से चौथा दिन बचाना है