वह चाहे तरल हो और वह ठोस
पानी और पत्थर दोनों में
नहीं कोई थोथ।
इसीलिए पत्थर पानी को मारता नहीं
धार देता है
पानी बदले में उसे सँवार देता है
तभी तो फूटती है धार
और पानी ही नहीं
गूँजता झरता है पहाड़
मुझ में उतरता है।
इसलिए बचो पानी,
थोथ से बचो !
यह तो ठीक कि जब पानी मरता है
तो उसे थोथ को भी ले पड़ता है
लेकिन इस में नयी थोथ भी तो करता है
मन इस दुष्चक्र से डरता है।
इसलिए बचो पानी,
मरो नहीं, झरो !
कि पहाड़ भी
मरे नहीं सँवरे, झरे
मुझ में उतरे !
(1976)