पराजय से न घबड़ाना, विजय बांकी तुम्हारी है,
न हिम्मत हार तुम देना, बची बाजी तुम्हारी है।
किये हो आज तक जो पाप, न दुहरा तुम उसे देना,
बची है शक्ति जो तुममें, उसे भी खो न तुम देना।
पराजय देखकर आगे न आँसू तुम बहा देना,
है जीवन कीमती इसको न सस्ते में गँवा देना।
पढ़ो, समझो अगर इतिहास तो दुनियाँ तुम्हारी है,
पराजय से न घबड़ाना विजय बांकी तुम्हारी है।
मसल डाला उसे तुमने वतन का जो दुलारा था,
नयन का नूर जो सबका सदा आँखों का प्यारा था।
सहारा था सुधारक का, बना गुण से जो न्यारा था,
चंचल बन जो जननी-जनक की आँखों का तारा था।
अगर समझो अभी भी भूल तो बस जय तुम्हारी है,
पराजय से न घबड़ाना विजय बांकी तुम्हारी है।
निपूती बन गयी माता मगर तुम रो नहीं पाये,
लुटा सिन्दूर पत्नी का, खुशी के गीत तुम गाये।
सिसकती थी सदा आँखें जले पर नमक छिरकाये,
जली उनकी चिता लेकिन नहीं तुम तनिक पछताये।
तुम्हारे कर्म से ही रूठती किस्मत तुम्हारी है,
पराजय से न घबड़ाना विजय बांकी तुम्हारी है।
जिसे गांधी ने सच माना, चुनौती तुमने दे डाली,
अहिंसा की जगह हिंसा खुशी से तुमने अपना ली।
वतन लूटा गया जी भर नहीं की तुमने रखवाली,
दया की, शान्ति की, सबकी चिता तूने जला डाली।
तुम्हारे पाप से ही तो मिटी आशा तुम्हारी है,
पराजय से न घबड़ाना विजय बांकी तुम्हारी है।
उपजती है नहीं धरती भरा भंडार तेरा है,
गलत हैं आँकड़े इस पर कभी क्या नजर फेरा है।
जहाँ तक दृष्टि जाती है विघ्नों न ही घेरा है,
तुम्हारे वास्ते पग-पग बखेरा ही बखेरा है।
तुम्हारे घात से ही जल रही बस्ती तुम्हारी है,
पराजय से न घबड़ाना विजय बांकी तुम्हारी है।
-दिघबारा,
23.8.1967 ई.