Last modified on 5 अगस्त 2020, at 02:45

बच्चा / श्रीप्रकाश शुक्ल

सड़क पर अटैची है
और अटैची पर अटा पड़ा एक बच्चा
जो पहियों के बल सरक रहा है

बच्चा डोरी से बन्धा है
जिसे माँ एक टाँग से खींच रही है
अपनी दूसरी टाँग से सड़क को नापती

बच्चा माँ की मदद कर रहा है
वह चुप्प है
कि ओह !
सब कुछ घुप्प है !

बच्चे की यह चुप्पी उसके खिलखिलाने की आवाज़ से ज़्यादा बड़ी है !

माँ को नहीं पता कि सामान ने बच्चे को पकड़ा है

या फिर बच्चे ने सामान को
वह बच्चे की नींद से भी अनजान है

जिसे जागते हुए कई दिन से खींच रही है
यह लगातार बड़ी होती जाती एक ख़बर है

कि जेठ की इस तपती दोपहरी में
सड़क के ठीक बीचो बीच एक बच्चा शान्त है
और माँ की गर्दन की तरह सड़क को
दोनों हाथ से जकड़ रखा है
सड़क लगातार चौड़ी होती जा रही है
और बच्चा है कि दूरियों से बेख़बर
अपनी पकड़ को मज़बूत बनाए हुए है !

आज का यह शान्त बच्चा
किसी भी अशान्त नागरिक से ज़्यादा मुखर है
जिसमें एक माँ लगातार बढ़ी जा रही है

बच्चा चला जा रहा है
और चली जा रही है यह माँ भी
जिसके साथ लटक गई है यह कविता

न तो माँ को पता है
न ही इस कविता को
कि इनको किस पते पर जाना है !