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बच्चा / सुप्रिया सिंह 'वीणा'

ऊ बच्चा केकरोॅ छेकै
जे बुढ़ोॅ रं लागै छै
जुआनी के देहरी पर
अभी बढ़िया सें गोड़ोॅ नै धरनें छै
काया करॅंख, धॅंसलोॅ आॅंख
हड्डी ही हड्डी लागै छै
चलै छै मरतुकाहा नांकी
चलै नै छै
घसीटै छै देहोॅ केॅ
थक चुरूवोॅ मरलाहा रॅं
‘ ताकै छै सरंग
वर्षा में भींगलोॅ छै
काॅंपै छै अंग,
बढ़लोॅ जाय छै राहत शिविरोॅ दिस
नंगधड़ंग
अर,े ई तेॅ किसना के बेटा छेकै
वहेॅ किसना ..................
जेकरोॅ दस बिघ्घी मकैय रोॅ लहलहैलोॅ फसल
दस कट्ठा केला
बाढ़ोॅ में डूबी के बर्बाद होय गेलै
........................
छेद होय गेलोॅ छै सरंगोॅ में
दसमां दिन छेकै
झोॅर-पानी छेकै कि दम्में नै मारै छै
स्कूली के ढहलोॅ पक्का बरंडा पर
टुअर नांकी बैठलोॅ छै सौंसे परिवार
हलफल बोखारोॅ सें कुहरै छै
किसना रोॅ घरवाली
गेलोॅ छै बेटा लानै लेॅ दवाय आरोॅ खाना
तभिये माइकोॅ सें बोलै छै सरकारी खानसामा
रोॅहत रोॅ सब सामान
बँटी केॅ खतम होय गेलोॅ छै।
अगला आवै वाला खेपोॅ रोॅ इन्तजार करोॅ
गारी देतें बोलै छै किसना
सब बीचै में बीचमाल होय छै
झुट्ठे बोलै छै रेडियोॅ
कि राहत रोॅ कमी नै छै।
.........................................
बाढ़ोॅ सें पैमाल जिनगी रोॅ ई खेल
पहिले-पहल देखनें छै किसना रोॅ परिवारें
लौटतें किसना के बेटा रोॅ गोड़
एत्तेॅ भारी होय गेलोॅ छै कि लागै छै
छोॅ-छोॅ पसेरी के वजन ओकरा गोड़ोॅ में
कोय बाँन्ही देलेॅ रहेॅ,
हाय रे समझ, ऊ छोटोॅ बुतरू के
कि वें सोचै छै, माय के पथ केना पड़तै
तहियोॅ देखै लेॅ माय के बढ़ी रहलोॅ छै
जल्दी-जल्दी ओकरोॅ गोड़ राहत शिविरोॅ हिन्नें
तखनियें हल्ला होय छै
बाढ़ सें डुबलोॅ लोगोॅ के बिचोॅ में मार होय गेलोॅ छै
छीना-झपटी, लाठी, भाला, गड़ासोॅ
सब्भे भिड़ी गेलोॅ छै एक दोसरा सें
छिनै में गुत्थम-गुत्थी, छिरयाय गेलोॅ छै
बनलोॅ, नैबनलोॅ सब्भे अनाज
आरोॅ जान लै केॅ भागलोॅ छै ऊ बुतरू
किसना रोॅ बेटा।