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बच्चे की साइकिल / मिथिलेश श्रीवास्तव

साल में एक इँक्रीमेंट और दो महँगाई भत्ते
दिलाने वाली एक ठीक-ठाक नौकरी के बूते पर
ख़रीदी गयी बच्चे की दुपहिया साइकिल
हम रख आते हैं
घर में ताला लगाने के पहले
सबसे अन्दर के कमरे में
अन्धेरे की कई तहों के पीछे छिपाकर
पहिये की हवा निकाल दी जाती है
पेडिल और पहिए जोड़ने वाली चेन
उतार दी जाती है जब तक बंद रहता है घर
घँटी की धातुई कटोरी का स्क्रू काफी कस दिया जाता है
देर तक ताकि घनघनाए उसकी आवाज़ और
पहचान लिया जाए
चुनावी पोस्टर में छिपाकर बच्चे की सइकिल लेकर
भागता हुआ आदमी जो
बच्चा बनकर बच्चे के साथ खेलने का
रचता है स्वांग और कुचल
देना चाहता है बच्चे की साइकिल से
हरा-भरा मैदान और पहियों में हवा की
जगह भरना चाहता है अपनी क्रूरता
और पैडिल में अपने पैरों की हूंमच
और कमानियों में अपनी जड़ता
देखिए बच्चे की साइकिल पर चढ़कर
वह किसी यात्रा पर नहीं निकलना चाहता
वह केवल तोलना चाहता है क्रोध जो वह
बच्चे में रोज़ भरता है ।