सोच रहा हूँ क्या बन जाऊं तो अति आदर पाऊं।
करूँ कौन सा काम कि जिससे बेहद नाम कमाऊं ।।
अगर बनूँगा गुरु मास्टर डर जायेंगे लड़के।
पड़ूँ रोज बीमार -मनायेंगे वे उठकर तड़के।।
कहता बनकर पुलिस-दरोगा -पत्ता एक न खड़के।
इस सूरत को,पर मनुष्य क्या ,देख भैंस भी भड़के।।
बाबू बन कुर्सी पर बैठूं तो मनहूस कहाऊं।
सोच रहा हूँ क्या बन जाऊँ तो अति आदर पाऊँ।।
करता बहस कचहरी में जा यदि वकील बन जाता।
मगर कहोगे झूठ बोलकर मैं हूँ माल उड़ाता।।
बन सकता हूँ बैद्द्य-डाक्टर पर यह सुन भय खाता।
लोग पड़ें बीमार यही हूँ मैं दिन रात मनाता।।
बनूँ राजदरबारी तो फिर चापलूस कहलाऊं।
सोच रहा हूँ क्या बन जाऊं तो अति आदर पाऊँ।।
नहीं चाहता ऊँची पदवी बन सकता हूँ ग्वाला।
मगर कहेंगे लोग दूध में कितना जल है डाला ।।
बनिया बन कर दूँ दुकान का चाहे काढ़ दिवाला।
लोग कहेंगे पर -कपटी कम चीज तौलने वाला।।
मुफ्तखोर कहलाऊँ साधू बन यदि हरिगुन गाऊँ।
सोच रहा हूँ क्या बन जाऊँ तो अति आदर पाऊँ।।
नेता खा लेता है चन्दा लगते हैं सब कहने।
धोबी पर शक है -यह कपड़े सदा और के पहने ||
मैं सुनार भी बन सकता हूँ गढ़ सकता हूँ गहने।
पर मुझको तब चोर कहेंगी आ मेरी ही बहनें।।
कुछ न करूँ तो माँ के मुख से भी काहिल कहलाऊँ।
सोच रहा हूँ क्या बन जाऊँ तो अति आदर पाऊँ।।
डाकू से तुम दूर रहोगे है बदनाम जुआरी।
लोग सभी निर्दयी कहेंगे जो मैं बनूँ शिकारी।।
बिना ऐब के एक न देखा ढूँढ़ा दुनिया सारी।
बच्चों ! मेरा प्रश्न बताओ काटो चिन्ता भारी।।
दोष ढूँढ़ना छोड़ कहो तो गुण का पता लागाऊँ।
सोच रहा हूँ क्या बन जाऊँ तो अति आदर पाऊँ।।