बजावत मुरली मीठी तान।
ठाढ़े बालरूप मन-मोहन मोहन मधु रस खान॥
कान उठाये सुनत चकित-मन हर्षित बत्स महान।
सिखि सुस्थिर सर्वांग सुनत सुर करत दिव्य रस पान॥
मुख-छबि मनहर सरल सुशोभित अरुन अधर हर मान।
नयन विशाल चमत्कारी अति, खींचत बरबस प्रान॥
कुंचित कच, सिर रतन-मुकुट, सिखि-पिच्छ, सुकुण्डल कान।
कर कंकन, कटि करधनि, कूजत नूपुर, कल कल गान॥
हेरत हरत सहज मुनि-जन-मन, करत प्रेम निज दान।
टूटत सकल बंध मायाके, मेटत मोह महान॥