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बटोर लो पत्थर / ओम पुरोहित ‘कागद’


किसी ने
कोई पत्थर नहीँ उछाला
न कहीँ आस पास
कोई दुष्यन्त कुमार ही है
...फिर ये आसमान मेँ
छेद क्योँ कर हुआ !

आज
आसमान मेँ छेद है
ओजोन परत के पार
यह भी नतीजा है
तबीयत से
पत्थर न उछालने का !

अब भी वक्त है
बटोर लो पत्थर
दुरुस्त कर लो
अपनी अपनी तबीयत
वक्त गुजरने के बाद
पानी सिर से
पार हो जाएगा
फिर कहीँ से भी
पत्थर हाथ नहीँ आएगा
तब ये नंगा आसमान
खूब चिड़ाएगा !