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बड़ी चकल्लस है / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

रोज-रोज का खाना खाना,
बड़ी चकल्लस है।

दादी दाल-भात रख देती,
करती फतवा जारी।
तुम्हें पड़ेगा पूरा खाना
नहीं चले मक्कारी।
दादी का यह पोता देखो,
कैसा परवश है।
बड़ी चकल्लस है।

भूख नहीं रहती है फिर भी,
कहती खालो-खालो।
मैं कहता हूँ घुसो पेट में,
जाकर पता लगा लो।
तुम्हें मिलेगा पेट लबालब,
भरा ठसाठस है।
बड़ी चकल्लस है।

पिज्जा बर्गर देती दादी,
तो शायद खा लेता।
चाऊमीन मिल जाते तो मैं,
पेट बड़ा कर लेता।
वैसे भी अब दाल भात में,
कहाँ बचा रस है।
बड़ी चकल्लस है।

पर दादी कहतीं हैं बेटे,
कभी भूल मत जाना।
सारे जग में सबसे अच्छा,
हिन्दुस्तानी खाना।
यहाँ रोटियाँ किशमिश जैसी,
सब्जी अमरस है।
बड़ी चकल्लस है।