Last modified on 24 जून 2016, at 12:26

बड़े सपने बनाम छोटे सपने / प्रेमनन्दन

एक अरब से अधिक
आबादी वाले इस देश में
मुट्ठी भर लोगों के
बड़े-बड़े सपनों
और बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों,
शानदार हाली डे रिसार्टस.... से बना
विकास रथ चल रहा है
किसानों-मज़दूरों की छाती पर।

ये बनाना और बेचना चाहते हैं
मोबाइल, कम्प्यूटर, कार
ब्राण्डेड कपड़े, मॅंहगी ज्वैलरी़.....
उन लोगों को
आज़ादी के इतने सालों बाद भी
जिनकी रोटी
छोटी होती जा रही है
और काम पहुँच से बाहर।

जिनके छोटे-छोटे सपने
इसमें ही परेशान हैं
कि अगली बरसात
कैसे झेलेंगे इनके छप्पर
भतीजी की शादी में
कैसे दें एक साड़ी
कैसे ख़रीदें --
अपने लिए टायर के जूते
और घर वाली के लिए
एक चाँदी का छल्ला
जिसके लिए रोज़ मिलता रहा है उलाहना
शादी से लेकर आज तक।

लेकिन इन मुट्ठी भर लोगों के
बड़े सपनों के बीच
कोई जगह नहीं है
आम आदमी के छोटे सपनों की।