गूँजे नहीं हैं न आवेग
खामोश कुण्ड में आ
मिलती है
पतली-सी धारा
कुछ देर ठहर कर
चट्टानों के बीच
सरक जाती है।
चुपचाप
बदलता रहता है पानी।
(1985)
गूँजे नहीं हैं न आवेग
खामोश कुण्ड में आ
मिलती है
पतली-सी धारा
कुछ देर ठहर कर
चट्टानों के बीच
सरक जाती है।
चुपचाप
बदलता रहता है पानी।
(1985)