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बदलते रिश्ते / पल्लवी मिश्रा

दो भाइयों के बीच की अनबन मिटने के है कगार पर;
कुछ हम चले, कुछ वो बढ़े, रंजिश की गली को पार कर।

कुछ अपने इरादे हैं अटल,
कुछ की उन्होंने है पहल,
सीमा पर गोली औ गोलों की
अब न रहेगी वो हलचल;

हर बाजी प्रेम से जीती जाए, नफरत की हदों को पार कर,
इस सच्चाई से हम सदा ही वाकिफ, अब तू भी इसे स्वीकार कर,
दो भाइयों...

इस नए साल का है पैगाम
हो अमन-चैन और युद्धविराम,
हो दोनों देश में नया सवेरा,
खुशहाल रहें दोनों अवाम;

दहशतगर्दी का साया भी अब न रहे संसार पर,
आ हमसे हाथ मिलाकर तू भी साझे दुश्मन पर वार कर,
दो भाइयों...

माँओं की गोद अब उजड़े न,
सिन्दूर माँग का बिखरे न,
हमसाए हैं, दरम्याँ हमारे
रिश्ते कभी अब बिगड़ें न

आओ मिलकर अहद यह ले लें, आजादी के त्योहार पर,
तू हाथ बढ़ा हम गले मिलें, इस बार नहीं इनकार कर,
दो भाइयों...
कुछ हम चले...