आज समझ पर भारी
चारों ओर दिखावे हैं
विज्ञापन ऐसा छाया है
बदल गये मानक
कर्तव्यों के पलड़े ऊपर
भारी चाहें हक
स्वार्थ सिद्धि का लक्ष्य साधते
खूब छलावे हैं
रिश्तों के बल पर रिश्तों को
लूटा जाता है
एक पंथ का बड़ा लुटेरा
हमको भाता है
संबंधों का तार जोड़कर
छलते दावे हैं
हम कौए, कोयल के अंडे
खूब पालते हैं
और हमें वो अपने जैसा खूब
ढालते हैं
देह सियारों की, शेरों जैसे
पहनावे हैं