Last modified on 20 अगस्त 2008, at 22:43

बदल रही है / महेन्द्र भटनागर


बदल रही है आज हमारी
पहली नक़ली तसवीर,
(खाओ भूखो ! हलवा पूरी
और गरम मीठी खीर !)

बदल रही है आज हमारी
फटी पुरानी पोशाक,
(अब न कटाना जग के सम्मुख
अपनी यह ऊँची नाक !)

बदल रही है आज हमारी
डर की हलकी आवाज़,
(दूर बहुत ही दूर भगी है
अब तन की मन की लाज !)

बदल रही है आज हमारी
यह जाड़ों मारी शॉल,
(आज बना लो भैया अपनी
मोटी नव-चादर लाल !)