मालिक! क्या शानदार बाछा है
अद्भुत प्रतिभाशाली
अवसर मिला तो दिलवा सकता है
नोबेल या वर्ल्डकप
इसकी कुलाँचे तो देखिए
आसमान छूने को आतुर
जहाँ ढंग का भोजन-पानी मिला कि
ढाँप देगा अच्छों-अच्छों को।
कुछ मदद कर दें मालिक
इस्कूल के टीचरजी भी
तारीफ करते नहीं थकते
रौशन कर देगा गाँव-जवार
आपका ही बेटा है मालिक
चमका देगा आपका नाम
मालिक ने गौर से देखी उसकी कुलांचे
माथे पर पड़ गया बल
साँसें तेज हुईं फिर ठंडी
माथे की सलवटों में घुमड़ने लगे कई सवाल
पुट्ठे की कसावट, सींग का नुकीलापन
उड़ान भरने की आतुरता
आँखों में भरा विश्वास
सब खून की तरह जम गया
मालिक की आँखों में।
क्या होगा हमारी संतानों का?
कौन कोड़ेगा हमारे पत्थर जमीनों को
क्या होगा हमारे अनंत वीर्यकोश का!
कहाँ खो गए मालिक!
दिल्ली न सही
केवल रांची तक जुगाड़ करवा दें हुजुर!
जीवन भर का अहसान होगा!
देखते हैं
पहले नदीवाले खेत की कटनी
जल्दी से पूरा कर दे...।
और हाँ, छोरे को बोल
कि छोटे साहब की बाइक की
एक-एक तिली चमका दे
फिर खास चमचे से मुखातिब हुए मालिक
आकाशवाणी जैसी आवाज आई -
किसी तरह अंडकोश कुटवा दो इसका
सब ठीक हो जाएगा!!!
कुछ समझा नहीं मालिक?
अरे बुड़बक! एक मानसिक अंडकोश भी होता है
अतिबलशाली
महावीर्यवान
परम घातक
और मुस्कुरा दिए मालिक।