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बनब पिशाचिन / कस्तूरी झा ‘कोकिल’

नाचि रहल अछि प्रेत दहेजक,
बाजै अछि हरमुनियाँ
तिलक केर गीत-नाद भॅरहल अछि
मुदा सिसकै छथि कनियाँ।

बापकऽ पढ़ौलथिन चीठी,
”देहकेर लेहू सुखागेल,
पीठ सँ सेटि गेल पेट।
समीप अछि बाबूजी जीवनक खेल।“

”खेल पथार तॅ पहिनें बिकायेल,
अब जनि बेचू देह।
मोन पड़ै अछि रातदिन,
मेय, दीदी, भैया केर नेह।

परंच एक टा बात कहि दैत छी,
लगा लेब ”फाँसी“ बनब ”पिशाचिन“
सास, ससुर ननद सभ्भकेॅ लेब ”प्राण“
सुख सँ नै रहती ई घोॅर में ”सौतिन“।

-17.11.1992