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बनारस / रोहित ठाकुर

समय का कुछ हिस्सा
मेरे शहर में रह जायेगा
 इस तरफ
नदी के
जब मेरी रेलगाड़ी
लाँघती रहेगी गंगा को
और हम लाँघते रहेंगे
समय की चौखट को
अपनी जीवन यात्रा के दौरान
अपनी जेब में
धूप के टुकड़े को रख कर
शहर - दर - शहर
बनारस
यह शहर ही मेरा खेमा है अगले कुछ दिनों के लिये
इस शहर को जिसे कोई समेट नहीं सका
इस शहर के समानांतर
कोई कविता ही गुजर सकती है
बशर्ते उस कविता को कोई मल्लाह अपनी नाव पर
ढ़ोता रहे घाटों के किनारे
मनुष्य की तरह कविता भी यात्रा में होती है